1. गुरु साधना जिसके बिना तंत्र अधूरा है
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गुरु साधना
गुरु साधना जैसा कि पूर्व में कहा गया है अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती हैं। तन्त्रपथ में गुरु की महत्ता अधिक है।
तन्त्र में गुरु की महत्ता अधिक क्यों-तन्त्र मार्ग में मन्त्र विद्या वह मार्ग है जिसमें मन्त्र अत्यन्त तीव्र गति से कार्य करते हैं और जरा सी चूक हो जाने पर साधक के स्वास्थ्य, धन, जीवन से लेकर उसके कुल परिवार कुटुम्ब का संहार क्षण में कर सकते हैं अथवा ऐसी मुश्किल खड़ी कर सकते हैं जो सदियों तक उस परिवार में बनी रहती है। यदि गुरुकृपा पूर्णरूप से साधक के ऊपर है तो गुरु की अन्तः प्रेरणा से साधक को समय-समय पर ठीक क्रियाओं निर्देश मिलता रहता है
और कोई चूक हो जाने पर गुरुकृपा से वह सम्भल भी जाती है। - गुरु भेद - सामान्यतः लौकिक गुरु तो सभी के होते ही हैं किन्तु तन्त्र पथ में अदृश्य शक्तियों से सम्पन्न गुरु की पूर्ण कृपा होना हैबहुत आवश्यक होती है। यह जानने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास सर विलियम जेम्स पहुँचे और कहा कि मुझे दक्षिणाकाली का दर्शन साक्षात् कराइये। वे बोले कठिन है, पर हो जाएगा। लो, यह गुरुमन्त्र सवा लाख इस विधान से जपो । जाकर विलियम थोड़ा अचकचाए कि दर्शन जिसका करना है उसका मन्त्र ही नहीं है यह तो "हां, हां, नही ?" प्रत्युत्तर में परमहंस ने कहा"मुझे पता है, तुम जाकर करो फिर बताना।"
किया तो सामने देवी खड़ी हो गईं। जेम्स ने बाद में रामकृष्ण जी से पूछा तो वे बोले, "गुरु का सामर्थ्य इससे भी बहुत बड़ा है। तुम काली उपासना सम्भाल नहीं पाते इसलिए तुम्हें गुरु साधना कराई है। कुछ अच्छे साधकों ने केवल गुरु साधना ही की है उससे आगे जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उनके कार्य स्वयं होते रहे हैं । "
कतिपय गुरु साधनाएँ और उनके विधान-शान्त एवं उग्र कारणों के आधार पर गुरु साधना के भी भेद हैं किन्तु यहाँ जो विधान दिए जा रहे हैं वे किसी भी तरह की मन्त्र विद्या के लिए अपने आप में सक्षम हैं।
गुरु कृपा विधान
मन्त्र - ॐ ह्रीं गुरो प्रसीद प्रसीद नमस्तुभ्यं । -
विधान - श्वेत रंग की पूजन सामग्री, जल, पुष्प, चावल, चन्दन, वस्त्र, धूप, दीप, फल नैवेद्य, दक्षिणा आदि के द्वारा किसी निर्जन स्थान के शिवालय अथवा गौशाला, जंगल अथवा अपने घर में एकान्त स्थान पर गुरुपूजा एक नई थाली पर गुरु की परिकल्पना करके करे ।
स्मरणीय-ध्यान रखें साधना पूर्णमासी की रात्रि से ही आरम्भ होगी और पूर्णमासी की रात्रि में ही समाप्त होगी। इस बीच किसी तरह का नशा, मांस, मदिरा, स्त्री सेवन, जुआ इत्यादि करना वर्जित है। किसी को कष्ट भी न पहुँचाएँ।
फल - उक्त विधान से की गई गुरु साधना से होती है और स्थाई रहती है। गुरुकृपा शीघ्र
गुरु सेवा विधान
गुरु की सेवा पूजा और जप से गुरु सेवा होती है। अदृष्य गुरु अथवा अपने गुरु का ही अदृश्य शक्तियों से सम्पन्न गुरु स्वरूप सन्तुष्ट होकर कृपा करता है।
मन्त्र — ॐ श्री गुरुदेवाय नमः ।
विधान - पहले कहे हुए विधान के अनुसार ही श्वेत पूजा - पदार्थों से नित्य एक माह तक गुरु पूजन करके उस मन्त्र के जप का सवा लाख जप पूर्ण करें।
गुरु जागरण विधान
गुरु न होने की अवस्था में या तो किसी को गुरु बना लेवे अथवा फिर गुरु को जगाने का अनुष्ठान करे।
मन्त्र — ॐ ऐं गुरुवे नमः फट्
विधान- इस विधान को केवल शान्त, एकान्त निर्जन में ही करना ठीक रहता है। इसमें गुरु पूजा में सारी पीले रंग की पूजन सामग्री प्रयुक्त होती है। अनुष्ठान पूर्वोक्त ही रहता है गुरु दर्शन
जिनको कोई गुरु न मिला हो उसके लिए यह विधान ठीक है। यदि वे गुरु का साक्षात्कार करना चाहते हैं तब तो अति लाभप्रद है।
मन्त्र — ॐ गुं गुरुदेव हुं फट् ।
विधान- इस विधान में पूर्ण निर्जन स्थान पर दो महीने अनुष्ठान करके ९ लाख जप पूर्ण करने से जो भी अपने गुरु होते हैं उनका साक्षात्कार स्वदर्शन हो जाता है फिर वे कृपापूर्वक समय-समय पर मार्गदर्शन करते रहते हैं किन्तु इस क्रिया को अति गुप्त रखना आवश्यक होता है। पहले भी, बाद में भी।
गुरु पुजा है। सामान्य पूजन और थोड़े जप से भी गुरुकृपा की स्थिति बन जाती है। यह केवल ३ दिन अथवा एक रात्रि का अनुष्ठान
मंत्र: ॐ नमो गुरुवे नमः ।
विधान – श्वेत सामग्री से गुरु पूजन एकान्त कक्ष में करके ५,००० जप, ३ दिन तक करे। गुरुकृपा की अनुभूति स्वयं होने लगती है।
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